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varsha Gujrati

Tragedy

4  

varsha Gujrati

Tragedy

कफन की चादर सस्ती क्यों

कफन की चादर सस्ती क्यों

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माना दुखों की गठरी से भरी है .. जिंदगी ,

अवसाद -खालीपन ही ... बना ऋंगार है ....

मगर कंपकपाती सांसो का भी तो मोल है

बनता इंसान ... संसार में क्यों कमजोर है .....


थमें हो कही तो .... फिर कुछ सांसे ले लो ,

रिश्तों के आंगन में उम्मीद को फिर बौ दो .....

खुशहाली का .. एक ख्वाब फिर सजा लो ,

दर्द के कुछ पल .. कही थमकर गुजार लो ......


सजालो नयनों में जरा ... मां के चेहरे को ,

आंसू भी सुख जाएंगे जख्म भी भर जाएंगे ...

गूंज सुन लो जरा लोरी की सीख कोई होगी ,

ठंडी छाया अमृत रस की मन में बिखरी होगी ....


अधूरे सपनों को मरने दो सांसे अभी चलने दो ,

सजाकर मुस्कान अपनों की मुस्कान खिलने दो ....

डर पर अपने ही हुकूमत करो जीत का काव्य रचो ,

खुद से ही खुद का संग्राम है ये ही तो जीवन सार है ....



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