STORYMIRROR

कोई वो अभिराज सा

कोई वो अभिराज सा

1 min
589


चाँदी सी उजली भोर में 

अभिराज सा कोई आकर

बंद पलकों पर सुगंधित लबों से 

मेरा शृंगार कर गया वो

विरक्त सी मेरी मुस्कान में 

रंग हज़ार भर गया वो


मधुमास की पहली बेला में 

विरह की पीर हर गया वो

आँसू के सागर भरती आँखों में 

प्रेमिल पुष्प भर गया वो

अमर प्रतिक्षित अंतहीन नभ में 

चिर मिलन की सरिता दे गया वो


द्रुत पंख वाले मन में 

उड़ान की परवाज़ भर गया वो

पीड़ा की मधुर कसक में 

शीत परत संदली गूँथ गया वो

प्रतिपल की झंखना को

युगों का आलिंगन दे गया वो

मुझ जीवन विधुर निशा सा

कुमकुम सा भर गया वो

अतृप्त उर धरा की 

तृष्णा मिटा गया वो



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance