वो लम्हें (नन्दू विस्तार)
वो लम्हें (नन्दू विस्तार)
क़ुर्बान मुझे तू कर गयी
शहादत मुझे नसीब न हुई
एक तुझे ही तो चाहा था
इस ज़माने में और किस्मत देख
मेरी तू भी मेरी न हुई
ज़ख्म नासूर ही बनेंगे तुझे
फिर से पाने से
फिर पता नहीं क्यूँ
दिल मिलना चाहता है
तुझसे किसी न किसी बहाने से
हर तरफ चारों ओर लगे हुस्न के मेले हैं
हम तुझे पाकर भी तन्हा थे
और आज इस भीड़ में भी अकेले हैं।