ये मेरे हमसफ़र
ये मेरे हमसफ़र
क़ुर्बान मुझे तू कर गयी
शहादत मुझे नसीब न हुई
एक तुझे ही तो चाहा था इस ज़माने में
और किस्मत देख मेरी,
तू भी मेरी न हुई।
ज़ख्म नासूर ही बनेंगे तुझे
फिर से पाने से
फिर पता नहीं क्यूँ
दिल मिलना चाहता है
तुझसे किसी न किसी बहाने से।
हर तरफ चारों ओर लगे हुस्न के मेले हैं
हम तुझे पाकर भी तन्हा थे
और आज इस भीड़ में भी अकेले हैं।
तुझे पाकर और बेखबर रहेंगे इस ज़माने से
फिर पता नहीं क्यूँ
दिल मिलना चाहता है
तुझसे किसी न किसी बहाने से।
पहले फिक्रमंद होते थे
अब बेपरवाह रहने लगे हैं पहले आशिक हुआ करते थे तेरे
अब लोग आवारा कहने लगे हैं
अब तो बस चाह है यही कि
तू आ जाये मेरे जनाज़े पे
फिर शायद ये आरज़ू न रहे
तुझसे मिलने की
किसी न किसी बहाने से।