कोई एक फूल।
कोई एक फूल।
चटख सतरंगी सौंदर्य को बिखेरते,
मौन में भी संवाद कर हर एक फूल कुछ कहता है।
हो सफेद या पीला नर्गिस आत्ममुग्ध,
स्वयं में ही सिमटा, स्वयं के लिए भी है जीना ये कहता है।
भोर में पूरब की ओर मुँह करके सूरज को देखता,
सूरजमुखी साँझ को पश्चिम में मुड़कर;
समर्पण में ही है सब सुख ये कहता है ।
सुबह -सवेरे कीचड़ से उठता कमल मादक गंध से,
अभिभूत कर माया-मोह से ऊपर उठ;
दिव्य और महान हो सकते हो ये कहता है।
रात भर टहनियों से आंसुओं की तरह टपक- टपककर,
गिरता पारिजात अपने प्रियतम के किरणों से;
गले मिलकर खिलखिलाते हुए सच्ची खुशी मिलन में है ये कहता है।
हर रिश्ते और मौके को मायने देते इन फूलों के जीवन सरल नहीं है।
प्रकृति की मार, कीट पतंगों की बेरहमी और बिककर भी
निष्काम भाव से सौंदर्य, सुगंध और पवित्र मुस्कान लिए
यादों में ये रच- बस जाते हैं।
किताबों के पन्नों में रखा,
कोई एक फूल वक़्त के साथ सूख जाता है,
पर याद में समाया कोई एक फूल पुनर्नवा सा होता है ;
ये बीते वक़्त के साथ मुरझाता नहीं।