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Dr. Poonam Verma

Abstract

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Dr. Poonam Verma

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स्त्री

स्त्री

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झूठ भी स्त्री के लिए सच होता है । 

घर के किसी कोने में,

 छुटपन में जब वह ;

 अपने गुड्डे -गुड़ियों का ब्याह रचाती है। 


पत्तों में ईट का चूरा का,

मसाला डाल पत्तों की सब्जी और गीली मिट्टी से

जब वह टेढ़ी -मेढी पूरियां बनाती है।

झूठे खेल में भी तब,  

नारीत्व का सच का बीज 

उसकी नन्ही सी उम्र में अंकुरित हो,   

बढती उम्र के साथ-साथ 

पुष्पित और पल्लवित होता जाता है। 


कितनी भी अल्हड़पन हो उसमें, 

 टूटी -फूटी चूड़ियों से खेलती  

चूड़ियों को उंगलियों से,

अपने हिस्से कर उलझन को

सुलझाना उसके भीतर के नारीत्व ही; 

उसे सिखाता है।


अट्ठा -गोटी खेलती नन्हे हाथों को

उछालना और बिखेरना ही नहीं

उसके भीतर का नारीत्व

उसे संभालना और समेटना भी सिखाता है।


 गीली मिट्टी के घरौंदा में उसके भविष्य के

घर का सपना जीवित हो उठता है।

 कल्पना के बेल -बूटे से 

बचपन में ही वह घरौंदे को सजाकर

घर को घर बनाना और सँवारना सीख जाती है।


सच ही तो  कहते हैं,

 बिन घरनी घर भूत का डेरा।


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