सर्वस्व शांति।
सर्वस्व शांति।
गधा और घोड़ा झूठ नहीं बोलते, बोनसाई और बरगद भी सेन्ध नहीं मारते ।
पाप -पुण्य से परे गधा और घोडा को मुक्ति की चाह कहाँ होती ?
बोनसाई और बरगद को भी प्रभु मिलन की प्यास नहीं होती ।
मनुष्य यह सब कर सकता है और किया भी है ।
अपनी अंतहीन लालसाओं की खातिर,कितने ही प्रजातियों के जीव -जंतुओ और वृक्षों को खो दिया है हमने ,
बहुत नहीं रहे और बहुत कतार में खड़े हैं ,विलुप्त होने के लिए;
डर है, कि हमारी यह अंतहीन लालसाएँ, एक दिन हमारा ही अंत ना कर दे।
बेशक जो खो चुका है, उसे वापस नहीं लाया है ,जा सकता पर जो छूट रहा है ;
उसे तो थाम लें हम ,
सरलता और सहजता को ही अपना कर;
बेचैन हमारा यह मन शांत हो सकेगा।
हम जो हुए जो शान्त तभी सर्वस्व शांति हो पाएगा।
