स्त्री की दौड़
स्त्री की दौड़
दौड़ो स्त्री और दौड़ो,
ग्लोबल देह धर्म का नया सौंदर्य मिथक,
36 -24 -36 का ढांचा,
ट्रेडमिल पर ही नहीं पार्क में भी,
तुम्हें बुला रहा है।
दौड़ो स्त्री अविलम्ब दौड़ो,
गोरी, काली, लंबी, छोटी, चाइनीज या इंडियन
कोई फर्क नहीं पड़ता, बस खप्पची हो तो
फिर बाजार का हर उत्पाद,
तुम्हें बुला है।
दौड़ो स्त्री अनवरत दौड़ो ,
सौंदर्य तुम्हारा धर्म ही नहीं, हथियार भी है।
मोटापा, बेजान बाल और निस्तेज त्वचा इस धर्म में पाप है।
इस पाप से मुक्त होने के लिए
आवश्यक उपवास और तप,
डाइटिंग एन्ड ब्यूटी ट्रीटमेंट,
तुम्हें बुला रहा है।
दौड़ो स्त्री बेरोकटोक दौड़ो,
मनः कृतं कृतं लोके,
संसार मन की गति से चलता है,
फिर भी बड़े पर्दे से मोबाइल स्क्रीन, तक की सफर में,
चलते हुए नहीं भागते हुए,
घूंघट, और बुर्का की बंदिशों को तोड़ते -तोड़ते,
वस्त्र ही नहीं देह से
अधोवस्त्र भी उतर रहे हैं।
नग्न होने के लिए,
असभ्य आदिमयुग नहीं,
सभ्य प्रगतिशीलता का भ्रम,
तुम्हें बुला रहा है ।
