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Sushma Tiwari

Tragedy

2  

Sushma Tiwari

Tragedy

कन्या

कन्या

2 mins
382


रोज सुबह सुबह ऑफिस की भागदौड़ से

निकल कर

बस स्टॉप पहुंचने की होड़, 

रोशनी और ठंडी ताज़ी हवा जाने चेहरे तक जैसे आती ही नहीं, 

दिन भर के लिए सौंपे गए काम की सोच 

इस मिली हुई विरासत के बीच में

स्टॉप के सामने खड़ी लड़की,

उसका मासूम मुस्कान के साथ मुझे देखना मेरा दिल भर दिया, और दिन बन गया।


जैसे भोर में घास के ऊपर

शुद्ध ओस की बूंद चमकती है,

वैसे ही कोई भी कठिन बाल श्रम

उसके दर्द और दुख में नहीं झांकता,

वह कन्या भ्रूण हो सकती थी

जो गर्भपात के सभी प्रयासों से बच गयी, 

वह एक बोझिल बोझ से बचने के लिए परित्यक्त महिला की संतान हो सकती थी, 

या किसी माता-पिता की खोई हुई संतान जो अपने लापरवाही पर पछता रहें हो।


जो भी हो उसके साथ कुछ निर्दयतापूर्ण 

 वास्तव में

अमानवीय व्यवहार हो रहा था ,

वह आधी रात तक कड़ी मेहनत करती थी,

फिर भी उसकी मालकिन नाराज होती है,

डांटना, पीटना, धक्का देना, बाल खींचना सब अत्याचार उसके लिए नया नहीं था।


आज घर से निकली तो मैंने सोच लिया,

रात मैंने उसे बहुत याद किया,

अब जाकर उसे वहाँ से निकालना होगा, 

मानवता का कुछ तो ख्याल रखना होगा,

और जब मैं बस स्टॉप के सामने गई

मैं यह जानकर हैरान रह गयी, 

वह मुझ पर फिर से एक आकर्षक मासूम मुस्कान डालने के लिए जीवित नहीं है,

शायद कुछ दुष्कर्म हुआ, जला दिया गया, 

हाँ यह हत्या थी, एक क्रूर हत्या,

सोच सोच कर दिल बैठा जा रहा है, 

इतना क्रूर और अमानवीय व्यवहार

कौन कर सकता है? 


आँसू की इन बूंदों में तुम

ओ प्यारी बच्ची बह चली हो, 

क्रूर शोषण से बचाने के लिए

अब मानवतावादी विद्रोह नहीं करता है,

किस युग में जन्म ली हो

फ़िर से गई तुम छली हो। 



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