कमजोर नहीं हैं बेटियाँ
कमजोर नहीं हैं बेटियाँ
कमज़ोर नहीं हैं बेटियाँ
कमज़ोर बनाते हैं हम उन्हें
यह न करो, वह न करो के
बंधनों में बाँधकर।
लड़कों को तो नहीं टोकते,रोकते
लड़के हैं ग़लती हो गई,
कर देते हैं सारे गुनाह माफ़
काश ! लड़कियों से भी यही कह पाते।
शरीर को शरीर ही रहने देते
पवित्रता, अपवित्रता से न जोड़ते,
चिड़िया सा चहचहाने,
कोयल सा गुनगुनाने देते,
तब हमारी बेटियाँ कमज़ोर न होतीं।
सृष्टि की जन्मदात्री,
सहनशीलता समाई
जिसकी रग-रग में,
कमज़ोर हो नहीं सकती,
हमें बदलना होगा,
बेटियों के प्रति नज़रिये को
जब नर अपवित्र नहीं तो नारी क्यों ?
सोच बदल पाये गर समाज की हम
दुष्कर्म नारी के लिये कलंक नहीं,
यातना नहीं ,बोझ नहीं, अभिशाप नहीं,
हादसा होगा, सिर्फ़ एक हादसा।