कल्पना
कल्पना
राजनीति में आ गए, झूठे औ मक्कार ।
रामराज्य की कल्पना, कैसे हो साकार ।।
चोरों की नित चोरियाँ, बढ़ती चारों ओर।
राम राज्य की कल्पना, लेगी कदा हिलोर।।
भाई-भाई का नहीं, पहले जैसा मेल।
राम राज्य की कल्पना, कष्ट रही है झेल।।
दफ्तर-दफ्तर भ्रष्ट जन, फैला भ्रष्टाचार।
राम राज्य की कल्पना, कैसे पाये पार।।
जाति-धर्म के नाम पर, करते लोग फसाद।
राम राज्य की कल्पना, कैसे आती याद।।