कलम
कलम
कभी-कभी हम राहों से,
भटकने लगते हैं !
बोलते हैं कुछ और लिखने,
कुछ और लगते लगते हैं !
बातें शालीनता और मर्यादायों,
में रह कर भी कही जा सकती है !
पर हम अक्सर भूल जाते हैं,
किसी को चोट भी लग सकती है !
हमारी इन भंगिमाओं को,
भले कोई अपने क्यों ना सराहे !
अच्छे मित्र हमको खुल के आखिर
अपनी बातें क्यों बताये ?
हम बात अपनी सादगी से ही रखें,
शालीनता और शिष्टता कलम में हम भरें !
जीत लें संसार को हम प्यार से,
लोग हमको याद ही करते रहें !