वह बिना कपड़े उतारे दीवान पर गिर पड़ा, जैसे गढ़े में गिर पड़ा हो। वह बिना कपड़े उतारे दीवान पर गिर पड़ा, जैसे गढ़े में गिर पड़ा हो।
हम जुड़ते हैं लोगों से तो आभार प्रकट करते हैं। हम जुड़ते हैं लोगों से तो आभार प्रकट करते हैं।
क्यो न अब मैं कदम बढ़ाऊ, क्यो न खुद को शीश नवाऊँ! क्यो न अब मैं कदम बढ़ाऊ, क्यो न खुद को शीश नवाऊँ!
सीधी भाषाओं में लिखकर तन -मन मिलन का हो संगम !! सीधी भाषाओं में लिखकर तन -मन मिलन का हो संगम !!
हमारे तरकशों में केवल अभद्र शब्दों के बाण सारे रह गये हमारे तरकशों में केवल अभद्र शब्दों के बाण सारे रह गये
आवाजों के इस जंगल में, कितनी आवाजें खो सी जाती हैं, आवाजों के इस जंगल में, कितनी आवाजें खो सी जाती हैं,