मनोवृति
मनोवृति
सामाजिक विषमताओं को देख रहे हैं !
अभद्र भाषाओं को सुन रहे हैं !!
कौन भला यहाँ चुप है ?
लोग विष वमन कर रहे हैं !!
हम पहले बापू जी के तीन बंदरों को देख सहम जाते थे !
अपनी मर्यादायों में सिमट कर रह जाया करते थे !!
बंदरों की तस्वीरों और मूर्तिओं की अब जरूरत क्या है ?
जब हमारी फ़ितरत ही बदल गयी है
तो उन तस्वीरों की जरूरत ही क्या है ?
हमारे तरकशों में केवल अभद्र शब्दों के बाण सारे रह गये !
देखने और सुनने को वीभत्स और कर्कश बोल सारे रह गए !!
कहने के लिए हम आज विकसित और संपन्न हैं !
पर शीलता और शालीनता के मन्त्रों से आज भी अनभिज्ञ हैं !!
