कल, आज और कल
कल, आज और कल
खेल रहे हैं अपने ही लोग यहाँ
रिश्ते - नातों के व्यापार में !
ना है सच्चा प्रेम ना स्नेह किसी से
अपने ही चिंगारी को हैं हवा दे रहे !
खाते हैं कसमें झूठी करते हैं झूठे वादे
रिश्तो को तो नफा नुकसान में हैं तौल रहे !
बदल गए लोग बदल गई है दुनिया सारी
बस अब है जिंदा खेल छलावा दुनियादारी !
पर कान्हा तुम कल भी थे मेरे
आज भी हो तुम पालनहार मेरे !
आने वाले कल की उषा से निशा तलक
हो मेरा भरोसा सच्चे सखा मेरे !
अपने प्रेम की डोर में मुझे बांधे रखना
मनमोहन बंसीधर तुम्ही खिवैया हो मेरे !
धोखे मतलब के इस संसार में
मेरे इरादों को तुम मजबूती देना !
दोनों आँखों की पुतली में
अपने प्रेम की ज्योति जलाए रखना !
