STORYMIRROR

अर्चना तिवारी

Classics

4  

अर्चना तिवारी

Classics

कल, आज और कल

कल, आज और कल

1 min
218

खेल रहे हैं अपने ही लोग यहाँ 

रिश्ते - नातों के व्यापार में ! 

ना है सच्चा प्रेम ना स्नेह किसी से

अपने ही चिंगारी को हैं हवा दे रहे ! 


खाते हैं कसमें झूठी करते हैं झूठे वादे 

रिश्तो को तो नफा नुकसान में हैं तौल रहे !

बदल गए लोग बदल गई है दुनिया सारी 

बस अब है जिंदा खेल छलावा दुनियादारी ! 


पर कान्हा तुम कल भी थे मेरे 

आज भी हो तुम पालनहार मेरे ! 

आने वाले कल की उषा से निशा तलक 

हो मेरा भरोसा सच्चे सखा मेरे ! 


अपने प्रेम की डोर में मुझे बांधे रखना

मनमोहन बंसीधर तुम्ही खिवैया हो मेरे ! 

धोखे मतलब के इस संसार में

मेरे इरादों को तुम मजबूती देना ! 


दोनों आँखों की पुतली में

अपने प्रेम की ज्योति जलाए रखना !


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics