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Aishani Aishani

Romance Tragedy Others

4  

Aishani Aishani

Romance Tragedy Others

किया सर्वस्य समर्पण..!

किया सर्वस्य समर्पण..!

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कब चाहा था मैंने कि... 

मैं तुमसे आगे ही रहूँ

मैंने तो चाहा था तुम्हारा साथ...!

चाहती थी मैं,

तुम्हारे साथ चलना

कदम से कदम मिलाकर तुमसे

चाहती थी, मैं तो

तुम्हारे हर सुख-दुःख में..

बराबर की साझेदारी, 

कब कहा था मैंने कि...

चढ़ने दो मुझ 

ऊँचाइयों पर,

चाहा था मैंने कि... 

तुम शिखर से ऊपर उठो 

नभ की विशालता को जानो

ऊँचाइयों को छूओ उसके

मैं तो चाहती थोड़ा 

रहना तुम्हारे साथ..!

पर तुमने.. 

आगे बढ़ते ही,

छोड़ दिया साथ, 

छुड़ा ली अपनी अंगुलि

एक ही झटके से,

पीछे भी नहीं छोड़ा था

तुमने मुझको..

खुद आगे बढ़े 

और मुझे...? 

 मुझे...

गिरा दिया गहरी खाई में..! 

जहाँ से मैं,

उठ भी नहीं सकती थी,

तुम तक पहुँचने से

पहले ही मेरी आवाज़ भी

लौट आती टकराकर पत्थरों से..! 

नहीं देना था साथ तो 

आये ही क्यों थे....?

थामा ही क्यों.....

तुमने हाथ मेरा..? 

साथ नहीं.... /

ना सही.. 

पीछे ही रहने दिया होता

पर नहीं....

मैं तो वहाँ थी

जहाँ से उठ भी नहीं सकती थी,

कब चाहत की थी मैंने

तुम्हारे साथ चलने की

 मैं तो बनना चाहती थी

तुम्हारा हमसफ़र/ हमराही

पर तुमने....

तुमने तो मुझे

छोड़ दिया राह में,

पत्थर की तरह

मैंने तो किया तुम्हें

सर्वस्व समर्पण, 

पर तुम..

तुम तो कर ना सके

कुछ अर्पण.....।!! 

       


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