"किसान की दुर्दशा"
"किसान की दुर्दशा"
पिया छोड़ो जा ऐसी किसानी,
जा में बड़ी हो रई हैरानी।
रात-दिन हम करै तैयारी,
निकरी जावै, ज़िन्दगी सारी।
मेहनत पै फिर जात पानी,
जा में बड़ी हो रई हैरानी।
पिया------
आसों हमने धान लगाई,
धान अभें तो पकनें ने पाई।
कब से चलों गओं पानी,
जा में बड़ी हो रई हैरानी।
पिया------
बटरी हमारी अच्छी लगी थी,
देख के हम खो आश जगी थी।
पकी फसल में गिर गओ पानी,
जा में बड़ी हो रई हैरानी।
पिया------
कैसे-पाले मोड़ा-मौड़ी,
हम पे नैया फूटी कौड़ी।
कर्जा में गई जिन्दगानी,
जा में बड़ी हो रई हैरानी।
पिया------