किरदार नहीं बदले हैं
किरदार नहीं बदले हैं
जीवन के इस रंगमंच ने अब भी सार नहीं बदले हैं ।
केवल चेहरे बदल गये हैं पर किरदार नहीं बदले हैं ।।
भले मुखौटे गढ़े गए हों, मर्यादा की सीमाओं में ।
किन्तु कंस के कृत्य वहीं हैं, कलाकार की लीलाओं में ।
बदले कितने ही दरबारी, पर दरबार नहीं बदले हैं .....।
केवल चेहरे............।।
कृष्ण सुदर्शन छोड़ बाँसुरी लिए हाथ में मुसकाते हैं ।
नहीं सुनाते दिखते गीता, रास रचाते दिख जाते हैं ।
बदल गए युग, बदले दर्शन, पालनहार नहीं बदले हैं...
केवल चेहरे.......।।
स्वार्थ ओढ़कर दुबक गए हैं, रिश्तों के अनुबंध अकेले ।
बिन मौसम आँखों का बहना, आखिर हृदय कहाँ तक झेले ।
दीवारें, छत बदल गये हैं पर आधार नहीं बदले हैं....
जीवन के..........।।
