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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

Tragedy

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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

Tragedy

किरदार नहीं बदले हैं

किरदार नहीं बदले हैं

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जीवन के इस रंगमंच ने अब भी सार नहीं बदले हैं ।

केवल चेहरे बदल गये हैं पर किरदार नहीं बदले हैं ।।


भले मुखौटे गढ़े गए हों, मर्यादा की सीमाओं में ।

किन्तु कंस के कृत्य वहीं हैं, कलाकार की लीलाओं में ।

बदले कितने ही दरबारी, पर दरबार नहीं बदले हैं .....।

केवल चेहरे............।।


कृष्ण सुदर्शन छोड़ बाँसुरी लिए हाथ में मुसकाते हैं ।

नहीं सुनाते दिखते गीता, रास रचाते दिख जाते हैं ।

बदल गए युग, बदले दर्शन, पालनहार नहीं बदले हैं...

केवल चेहरे.......।।


स्वार्थ ओढ़कर दुबक गए हैं, रिश्तों के अनुबंध अकेले ।

बिन मौसम आँखों का बहना, आखिर हृदय कहाँ तक झेले ।

दीवारें, छत बदल गये हैं पर आधार नहीं बदले हैं....

जीवन के..........।।



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