किन्नर व्यथा
किन्नर व्यथा
सृष्टि रचते रचते वे सो गए।
और हम यूं ही अधूरे पैदा हो गए।l
लड़ रहे हैं अस्तित्व की लड़ाईl
नाच - गाकर दे रहे हैं बधाई।l
नहीं बना पाए अपनी पहचान।
अलग रहते दबाकर अरमान।l
भला हो देश की सुप्रीम कोर्ट का,
दिलाया जो उचित स्थान।l
नाम दे दिया है थर्ड जेंडर क्ल
सम्मान से बीत रहा है जीवन।l
अपना अलग समाज बनाते।
जीवन यापन कर हँसते - गाते।
बधाईयाँ गाते आशीष देते।
नाच गाकर हम दुआएँ देते।l
अपनों को खो के अपनों को पाया।
सुःख - दुःख का संसार बसाया।l
दुःख छिपा कर हम हँसते जाते।
ठुमक - ठुमक बधाईयाँ गाते जाते।l
अपने संसार के हम नियम बनाते।
गुरु माँ, गुरु सखियों सँग निभाते।l
लिखने वाले लिख गए हम पर पोथी।
हमको तो वह लगती है थोथी।l
भटक रहे हम अब भी दर दर।
नहीं मिला वो सम्मान और आदर।l
कभी पूजा शर्मा बन उभरते।
कभी लक्ष्मी बम के रूप में आते।l
फ़िल्म बना तुम करोड़पति बनजाते।
फिर भी हम सड़कों पर भटकते जाते।l
हम आधे हैं भले हों तो क्या ?
हैं इंसान रूप में तो हम भी।
हैं विधाता की संतान हम भी।
मत करो अपमान अब भी।l