ख्वाहिश (कुछ पूरी होती अधूरी सी....)
ख्वाहिश (कुछ पूरी होती अधूरी सी....)
ये उसकी नहीं,
ये ख्वाहिश थी मेरी
ये उसकी नहीं,
ये ख्वाहिश थी मेरी
ख्वाहिश थी कि मुझे वो चाहे बेपनाह
लेकिन तब तक,
जब तक उसका दिल धड़के खुद मेरे लिए
ख्वाहिश थी मेरी कि वो मुझमे ही आके ठहरे
लेकिन तब तक
जब तक रुके उसकी धड़कन मेरे लिए
हाँ ख्वाहिश थी मेरी
कि बनूँ उसकी सुबह, और रातें बीते, संग मेरी
हाँ ख्वाहिश थी
कि नज़रों से दूर हू कितनी,
लेकिन यादो मे बसी रहू बस मैं ही
हाँ ख्वाहिश थी.....
ख्वाहिश थी कि
करे मोहब्बत टूट कर, हदों से होकर पार
हाँ ख्वाहिश थी कि मैं, और बस मैं ही बनूँ उसकी राज़दार
लेकिन.....
लेकिन,
कहा भी ये मैंने ही था,
निभाना ये रिश्ता मुझसे
तब तक, जब तक तुमसे हो पाए
मजबूरी में ढोने चलो प्यार मेरा
तो ये दर्द ना मुझसे सहा जाएँ
जब तक भी किया
टूट कर किया
जब तक भी किया
डूब कर किया
उसने भी जिया, मैंने भी जिया
फिर चल ना पाया जब हम का सफर
वो खुद में टूट गया, और मुझे मैं कर गया,
ख्वाहिश तो मेरी ही थी ना
बस पूरी, वो कर गया