ख्वाबों की बात
ख्वाबों की बात


कल रात जो ख्वाबों में आए, वो तुम ही थे न
शरारत से जो थे मुस्कुराए, वो तुम ही थे न।
मैं तो सोई पड़ी थी ओढ़ एहसासों की ओढ़नी
हौले से चाँद तारे टाँक लाए, वो तुम ही थे न।
नयनों में कजरे की चमक ही कम न थी
प्रेम की नई रोशनी भर लाए, वो तुम ही थे न।
गेसुओं को भी गजरे से सजा रखा था हमने
हसीं जज्बातों के फूल महकाए, वो तुम ही थे न।
खामोशियों में ही गुजरती जा रही थी रात
अपने नैनों से जो बतियाए, वो तुम ही थे न।
यूँ तो मोहब्बत भी इबादत से कम नहीं होती
ख्वाहिशों को पूज के आए, वो तुम ही थे न।
सारी रात की मस्ती का आलम मत पूछो हमसे
दिन में भी सीमा गुनगुनाए, वो तुम ही थे न।