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सीमा भाटिया

Tragedy

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सीमा भाटिया

Tragedy

बदलता वक्त

बदलता वक्त

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उतर के गोद से अब चलने लगे हो तुम

दूर न जाने कितने निकलने लगे हो तुम ...!!


नन्हे नन्हे कदमों पे जाती थी वारी वारी

कैसे अब राहों से भटकने लगे हो तुम...


अपने ही हाथों से निवाले खिलाए थे तुम्हें

मेरी भूख से अपरिचित रहने लगे हो तुम...


पढ़ाए थे सदा ही नैतिकता के पाठ शुरू से

मर्यादा की सब हदें पार करने लगे हो तुम...


मान कितना था अपनी परवरिश पर मुझे

जाने कब दूध के कर्ज से मुकरने लगे हो तुम...


कब मांगी है कोई धन दौलत और जायदाद

सम्मान देने में भी कंजूसी बरतने लगे हो तुम..


रिश्तों को निभाने में बिता दी यूँ ही जिंदगी मैंने

पर अभी से अपनों से कन्नी कतरने लगे हो तुम..


चलो करती हूँ आज़ाद तुम्हें ममता के पाश से

बेरुखी से जिसे काटने को तरसने लगे हो तुम..


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