चुनावी बयार
चुनावी बयार
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यह चुनावी बयार है
खंजर आर-पार है
वक्त बचा बहुत कम
फैला कारोबार है
तानों उलाहनों की
मची भरमार है
गाली गलौज से भी
बना पड़ा प्यार है
न कोई आचार संहिता
न कोई सद्व्यवहार है
नेताओं की रैलियों में
चाहे लगी भीड़भाड़ है
न जाने फिर भी क्यों
न फलता व्यापार है
वादों के मोहक जाल में
फंसने को पंछी तैयार है
प्रजातंत्र की लुटिया फिर
डूबने को बेक़रार है।