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सीमा भाटिया

Inspirational

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सीमा भाटिया

Inspirational

विरह की पीर

विरह की पीर

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पिया बैरी जा रहे हैं बिदेसवा

मन ना माने मोरा मिलन बिना

सज संवर सोलह श्रृंगार कर

लाज से भर रहे कजरारे नैना

मधुर यामिनी के सपने सुहाने

कर रहें अब दोनों को दीवाने

अंग लगाने की भई व्याकुलता

सहेजना चाहूँ मिलन की रतिया।


पिया बैरी भई यह रात हमारी

नन्हा पुकारे मार कर किलकारी

ख़ुशियों के पल बाँटने की चाह 

मुन्ने को दुलारने की भी तमन्ना

फिर जाने कब ये पल मिलेंगे

पर दिल लुटाना चाहे वात्सल्य

तुम्हें लाडले संग यूँ ही निहारते 

नींद की आगोश में बीती रतिया।


अब विरह की घड़ी भी आ गई

कजरा बह गया अँखियों से यूँ ही

गजरा भी सूख कर बिखर गया

भावनाओं का वह ज्वर जाने कब

रूलाई के जरिए नैनों से बह गया

जाने कब बीतेंगी सजनवा मेरी

अकेले मुन्ने संग अब लम्बी रतिया।


कान्हा मोरे अब बिनती यह तुझसे

रखियो कृपा मेरे बिदेसवी सजन पे

सरहदों पे गया है जो छोड़ विरह में

रहें सलामत बस यही मेरी दुआ है

तेरी दया दृष्टि से ये दिन कट जाएंगे

सुमधुर पल वो फिर वापस आएँगे।


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