हौसलों के दीप
हौसलों के दीप
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प्रगति की दौड़ में
कदम आगे बढ़ चले
तिमिर को चीरते हुए
हौसलों के दीप जले..
स्याह अंधेरों से निकल
मानवता का पाठ पढ़ा
आदिम युग को विसार
चांद की ओर कदम बढ़ा..
आदम युग की रिवायतें
नवयुग की ओर मोड़ दे
असीमित अनंत नए
आकाश का विस्तार दे..
राह भले ही हो कठिन
असंभव कुछ भी नहीं
अपने कदमों तले है अब
क्या आसमां और जमीं...।