ख़्वाबों के मकान में
ख़्वाबों के मकान में
नोंक झोंक बदल गयी तकरार में छोड़ गए वो मंझधार में
सपनों में होती अब मुलाकातें हैं वो भी ख्वाबों के मकान में
मंजिल दोनों की एक है मिलन होगा भोले के श्मशान में
क्या लाया बंदा साथ है और क्या ले जाना है उसने साथ में
रूह से निभा रहे रिश्तों की अपनी अलग ही दास्तान में
दूर हो या हो पास तुम नाम लिखा है संग उस मकान की दीवार में
यूँ तन्हा तुम भी खुश नहीं हो कहते हो हमसे हर ख्वाब में
क्या इतना भी मुश्किल है क्या मिलकर कह दो ना सच हजार में
कुबूल हो तुम आज भी दिल को आवाज़ दो हमको आवास में
ज़र्रे ज़र्रे में मुकम्मल हो बातचीत में फर्क़ कहने को एक बात में।