खुशी और गम
खुशी और गम
आ गए तेरे शहर घर बार अपना छोड़ कर ।
अजनबी से सुबह शाम अजनबी सी दोपहर ।।
एक नन्ही मीन का सागर में कब हुआ गुजारा ।
फेंक जाती है किनारे पर सदा कोई लहर ।।
मुफ्त ही मिलते अंधेरे हर तरफ क्या कीजिए ।
भटकाएगी रोशनी की चाह शायद उम्र भर ।।
याद आयेंगे यकीनन हर खुशी हर एक गम ।
हाँ कभी भी रूक न पायेगा यहाँ अपना सफर ।।
जिन्दगी पत्ता है सूखा डाल से टूटा हुआ ।
वक्त के झोंके उड़ा के रख गए 'सपना' इधर ।।