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ख़ुद से झूठ कहने लगे हैं

ख़ुद से झूठ कहने लगे हैं

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हर झूठ को सच करने में लगे हैं,

औरों की छोड़ो, खुद से झूठ कहने लगे हैं,

हम दूरबीनों से कोशिश करते झूठ सच हो,

पर बस हम भ्रम के दूरबीन से देखने लगे हैं ।


ख़ुदा तो जहां में एक ही है सिर्फ,

फिर भी ख़ुद को ख़ुदा हम समझने लगे हैं,

सुकून की नींद के लिए दौड़ते हर घड़ी,

अब कमाकर भी रातों को जगने लगे हैं ।


ख़ुद की ज़िद है इतनी,

सब समझ कर नहीं समझने लगे हैं,

मुस्कराहटों का श्रृंगार रखते हैं होठों पर,

आँसूओं के भँवर में रोज फँसने लगे हैं ।


कल तक साथ थे जिसके हमदम होकर,

आज उनसे बहूत दूर होने लगे हैं,

एक नाम की चाह ऐसी लगी,

हरपल हम बदनाम होने लगे हैं ।


चलो हम तुम्हें नहीं बताते कितने हारे हुए हैं हम,

खुद से भी तो नजर चुराने लगे हैं,

शतरंज की बिसात बिछाई है हमने,

ऱोज ज़िन्दगी को दाँव पर लगाने लगे हैं ।


तमन्ना थी सबका अपना होकर जीने की,

ना जाने क्यों खुद की अलग दुनिया बसाने लगे हैं,

आसमान को अपना बनाने की होड़ में,

हम अपनी जमीन को भी गँवाने लगे हैं ।


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