Anuradha Negi

Romance

4.5  

Anuradha Negi

Romance

खुद चाहा पर तुम्हें सौंप दिया

खुद चाहा पर तुम्हें सौंप दिया

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याद आते हैं आज भी वो दिन मुझे

जब तुम पहली बार स्कूल में आए थे

मेरी कक्षा में दाखिला लिया था तुमने

और खबर भी न थी इस बात की मुझे।

२ दिन हो चुके थे तुम्हें आए हुवे स्कूल

और मेरी आंखों से हटी ही न थी धूल 

सहसा दिख गए तुम मुझे दिन तीसरे 

जब गणित पढ़ने बैठे थे तुम दूूसरे सिरे।

पूछा मैंने कुछ कि कौन है नया सहपाठी 

तुम्हारी चचेरी फिर मुझे पहचान है बताती 

साथी बाकी कहतेे थेे मुझे चाहते तुम हो 

और पूछने को कहतेे हो कि कहांं गुम हो ।

कभी कलम तो कभी कागज भी मांगा था 

तुम्हारी तरफ से एक खिंचाव का धागा था

दो महीने तक समझ पाती मैं तुम्हें चाहूं फिर

और तब तक देर हुई और बदल गई लकीर।

तुम्हारी चाहत बन गई एक पुराने साल वाली 

और उसके आने पर बजाते तुम सीटी ताली 

मुझसे ही निवेदन कर तुमने मित्रता बढ़ाई 

मेरा दुखता दिल और तुमने कटुता निभाई।

          


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