खेल_खेल में मेल
खेल_खेल में मेल
खेल_खेल में हो जाए भाई मेल,
मस्ती में चलें जैसे चलती है रेल।
खेल_खेल में हो जाए अटूट दोस्ती,
फिर जीवन भर रहे हैं खूब निभती।
खेल_खेल में हो बातें भी अनेक,
बात करते करते लेते जगह छेक।
खेल_खेल में रहते हैं हम चुस्त,
काम भी सब तब करते दुरुस्त।
खेल_खेल में लग जाते हैं रंग,
बाधाएं भी हो जाता है तब तंग।
खेल_खेल में जीवन का है ढंग,
नियम को कभी नहीं करें भंग।
खेल_खेल में जानें सब ही मर्म,
जीवन जंग में रहें तन_मन गर्म।
खेल_खेल में सुख _दुःख का भान,
फिर भी खोते नहीं हैं फौलादी आन।
खेल_खेल में संदीप जी को मान,
भर देंगे जीवन में एक दिव्य जान।