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Arunima Bahadur

Action Inspirational

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Arunima Bahadur

Action Inspirational

खेल और बचपन

खेल और बचपन

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आज चाहूं मैं लौटना, बचपन के गलियारों में।

फिर से चाहूं खेल खेलना, चाँद सितारों में।।


बचपन का खेल अनोखा, कभी रूठना, कभी मनाना।

कभी डर कर, कभी मचल कर, माँ के आंचल में छिपना।।


वो पापा की प्यारी बेटी का, नील गगन की छांव में रहना।

, कितने सारे खेल सीखकर, कभी जीतना, कभी हारना।।


हर दिन एक नए खेल संग, नव गीत सा जीवन का चलना।

काश!थमता कुछ वक्त अभी, कुछ और जरा पीछे चलता।


उस पुराने वक्त में, मेरा बचपन फिर मुझसे आ मिलता।

भूल सारी आज जरूरते, फिर हर पल मैं जो खेलती।।


भूली हो जो आज मुस्काना, बचपन मे फिर मुस्कुरा देती।

एक अंधी दौड़ से मानवता, अब तो मुक्ति भी पा लेती।।


शायद, नही संभव, वक्त का वापस फिर लौट के आना।

पर जी तो सकते हैं पुनः, बचपन का वो खेल खज़ाना।।


भूल कर आज सब बातें, चलो खुद से चले अब मिलने।

कुछ पल ही सही, चलो चले फिर बचपन से मिलने।।


दर्द मिट जाएगा फिर सदा सदा, जो खेल फिर आज खेला।

चलो फिर से जीते हैं, आज बचपन के खेल फिर खेलते है।।


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