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Priyanka Singh

Thriller

4.0  

Priyanka Singh

Thriller

खौफनाक मंजर

खौफनाक मंजर

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लिखने बैठे खौफ़ का मंजर

हाथ मेरे कँपकँपाने लगे

देखके सामने झूलता कंकाल

लब मेरे लड़खडा़ने लगे।


चीखना चाहा आवाज़ ना निकली

कुर्सी जोर से हिलने लगी

पन्ने हवा में उड़ने लगे

खिड़की खटखट बजने लगी।


आँखे बड़ी बड़ी खुली रह गई

अजीब आवाजें आने लगी

श श श डरती क्यों है प्यारी

वो जोर जोर से हँसने लगी।


तूने बुलाया लो मैं आ गई

मैं तो चलती फिरती प्रेत आत्मा

अब तेरा शरीर मुझे चाहिये

ले गई खींच मुझे श्मशान में।


काले लिबास में लिपटे झूलते

मुर्दे कंकाल सारे नाचने लगे

शुरू हुआ फिर बलि का तांडव

किसी को मेरा शरीर चाहिये।


कोई बैठा खून का प्यासा

श् श् क्यों रोती है पगली

अब तो तू शिकार हमारा है

तेरी बलि चढ़ाते ही मुझ

को।


काली शक्ति मिल जायेगी

तेरे शरीर में घूस जाऊँगी

मैं अमर प्रेत आत्मा बन जाऊँगी

फिर मेरा काला राज़ चलेगा।


काली शक्ति अच्छाई से टकरायेगी

और रात गहराने लगी

बलि विधा चलने लगी

नाखून मेरे बढ़ने लगे

काले लंबे बाल बिखरने लगे।


आँखों मे लाल खून तैर गया

और सांसें मेरी रूकने लगी

देखा तो पैर उलटे हो गये

मैं भी डरावनी भूत बन गई।


मैं हवा मे झूलने लगी

प्रेत आत्मा घूस गई मेरे शरीर में

मैं झूलती देखती रही

एक डरावनी हँसी फिर गूँजी।


तुझसे बडी़ प्रेत आत्मा बनूँगी

काली शक्ति पे राज़ करूँगी

तुझको अपने शरीर से बहार कर

अपने शरीर मे वापिस घूसूँगी।


और चल पड़ी अपने शिकार को

लिखने फिर एक नया खौफनाक मंजर।


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