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दिनेश कुमार कीर

Children Stories Inspirational Thriller

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दिनेश कुमार कीर

Children Stories Inspirational Thriller

आम आदमी

आम आदमी

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आम आदमी की व्यथा


किसान हूं, नौकर हूं, मैं मजदूर हूं-2

कुछ सपने हैं मेरे, इसलिए मजबूर हूं

बचपन गरीबी में गुजरा है, भविष्य संवारने चला हूं-2

सड़क की तपती धूप में, दो रोटी कमाने चला हूं


मेरा सपना है एक छोटा सा घर बनाने का

अपने बच्चों के जीवन को बेहतर बनाने का

मां-बाप के बुढ़ापे का सहारा बन जाने का

पत्नी संग दो वक्त की रोटी चैन से खाने का

बच्चों के लिए खुशी का मैं पूरा आसमान चाहता हूं

मैं किसान, मैं नौकर, मैं मजदूर हूं

मैं भी सम्मान चाहता हूं -2


जेहन में दुख-दर्द हजार है -2

चेहरे पर एक खामोश मुस्कान खिली है

पुरखों से मुझे जमी-जायदाद नहीं, 

जिम्मेदारियां मिली है

कांधे पर रस्सी, पांव में छाले हैं-2

हम जमी के परिंदे, बड़े भोले भाले हैं

जीवन में कुछ कर जाने का मैं एक अरमान चाहता हूं

मैं किसान, मैं नौकर, मैं मजदूर हूं

मैं भी सम्मान चाहता हूं -2


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