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Priyanka Singh

Abstract

4.2  

Priyanka Singh

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खुले विचार

खुले विचार

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एक सुहानी शाम,लेकर हाथों मे हाथ

कह दी मैने उनसे अपने दिल की बात

फिर क्या था !


उसने अपना हाथ छुड़ाया

जोर से मुझे झकझोरा , ऊँचे से बोला

एक लड़की होकर तुमने प्रपोज किया

बड़ा घोर अनर्थ पाप किया


कपड़े पहनती सीधे सादे

और विचार अमेरिका वाले

जाओ मैं नहीं करता तुमसे प्यार

तुम कैसे चलाओगी मेरा घर संसार


मुझे चाहिये भोलीभाली भारतीय नार

सर पे रख पल्ला , हाँ मे हाँ मिलाने वाली

घर बैठ , बडो़ की सेवा करने वाली

ना की तुम जैसी खुले विचारों वाली

अब गुस्से से मेरा चेहरा लाल तमतमाया 


क्या सोच तुमने मुझको इतना सुनाया

सर पे पल्लू नही , पर रखती सबका ध्यान

बड़े बुजुर्गो का मुझको मान

खुले विचार और है संयुक्त परिवार का साथ

नौकरी कर भी सबका रखती ध्यान


खुले विचार, संस्कार मर्यादा का मुझको भान

अपने हक अधिकार का मुझको ज्ञान

नही छल सकता मुझे तुम जैसा इंसान

बिना जाने कैसे किया मेरा अपमान

अच्छा हुआ पता चल गये तुम्हारे विचार

नहीं कोई मेल हम दोनो का ,सब खत्म आज

मेरी सुहानी शाम बना दी तुमने काली रात !


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