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Shashikant Das

Abstract Drama Tragedy

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Shashikant Das

Abstract Drama Tragedy

खामोशी

खामोशी

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आज ना जाने जीवन में अजब सी खामोशी है, 

नींद है मदहोश लेकिन आँखें झुलसी सी है।


जुबान के परतो में उमस सी बस गयी है, 

दिल की धड़कने भी मानो आलसी हो रही है।


ख्वाबों के सरहदों में उदासी जम सी गयी है, 

मस्तिक के सिरहाने में मानो आभासी सी छा गई है।


सत्य और असत्य के बीच लकीर धुलमुल हो रही है, 

माहौल और संस्कृति अपनी वास्तिविकता खो रही है।


साहस और ईमान के ताक़त का गला घोटा जा रहा है, 

जख्मो पे मलहम लगाने को कोई आगे नहीं आ रहा है।


दोस्तों, नाराज नहीं कोई भी यहाँ अपनी ज़िन्दगी से, 

लेकिन डरते हैं सभी क्या होगा अंजाम इस तूफानी खामोशी से।


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