कच्चे धागे
कच्चे धागे


इस जीवन पथ पे
जब हम छोटे-छोटे पाँव
धरा पर रखते
तो नन्हें-नन्हें हाथ
एक-दूसरे को थाम लेते।
हाथ में हाथ थामें
आँगन की दुनिया पार कर लेते।
माँ की डाँट के आँँसू भी
एक दूसरे के पोंछ लेते।
खुद ही लड़ते-झगड़ते खुद ही
अपने मामले सुलझा लेते।
छोटी-छोटी परीक्षाओं के
आंकलन भी खुद ही कर लेते।
फिर अपनी-अपनी सफलताओं
के लिये दूरियाँ भी सह लेते।
पर एक-दूसरे के लिए
सदा अपने को तैयार कर लेेते।
समय आने पर मीलों की दूरियाँँ
सैकड़ों में पार कर
लेते।
जरूरत पड़ने पर एक-दूसरे के लिए
अपने अंग भी दान कर लेते।
उस की एक साँँस के लिए
अपनी सो सांसे कुर्बान कर लेते।
डगर के उतार-चढाव
सारी उम्र आपस में बाँँट लेते।
खुशियों की टोकरी में सेे
खुशियाँ एक-दूसरे के लिए ले लेते।
न जाने कितने इस जीवन केे
खट्टे-मिठे अनुभव
आपस में ही बाँट लेते।
जीवन के आखिरी पडाव तक
एक-दूसरे के लिए दुआ माँग लेते।
अपने को सारी उम्र
इस कच्चे धागे से बांध लेते।
एक-दूसरे की रक्षा के लिए
रक्षाबंधन में बाँध लेते।