कैसे गुजरेगी शाम...!
कैसे गुजरेगी शाम...!
कभी सोचा ही नहीं
कैसे गुज़रेगी यह शाम
तेरे जाने के बाद..?
मैंने देखा ही कहाँ
उसके बाद फ़िर कोई शाम?
बंद कर दिये थे मैंने सारे
रौशनदान और खिडकियाँ
ताकि ना आने पाये कोई शाम
फ़िर से मेरे जीवन में तेरे बाद..
उस शाम की सभी चीजें-
सारी बातें अभी वैसी ही हैँ
आकर देख जाओ इक दफ़ा..
वो चाय की प्याली, बिस्किट्स और
कुछ बिखरे हुए पन्ने, खुली हुई कलम
सब ज्यौं के त्यौं रख दिये हैं मैंने..!
फ़िर सोचा ही नहीं लिखने की तेरे बाद
तेरे बिना कैसे गुज़रे अब कोई शाम ?
और किसके साथ गुज़रेगी शाम..?
कैसे..?
कैसे गुज़रे बिन तेरे कोई शाम..??