काट डाले वृक्ष हैं
काट डाले वृक्ष हैं
बैठकर अब क्यों मनुज तू आँख मूँदे रो रहा ।
पाप भारी है किए फिर सर पकड़ क्यों रो रहा॥
जीव जिनसे थे सुरक्षित काट डाले वृक्ष हैं।
चेतना जागी नहीं तब आँख क्यों अब खो रहा॥
सुत समझ वह पालता था वृक्ष सारे प्यार से ।
प्यार का दामन जला अब वह दुखी है हो रहा है॥
है बड़ा दाता जहाँ में पेड़ क्यों तू काटता ।
हर जरूरत है अधूरी क्यों मनुज अब सो रहा॥
वेदना में वृक्ष भी हैं मूर्ख क्यों मानव हुआ।
खुद मिटाने आप को ही बीज खोटे बो रहा॥
साँस सारी खो रही हैं रोग सारे घेरते ।
है 'प्रखर' जीना कठिन अब हाथ क्यों तू धो रहा॥
