STORYMIRROR

Ganesh Chandra kestwal

Tragedy Inspirational Others

4  

Ganesh Chandra kestwal

Tragedy Inspirational Others

काट डाले वृक्ष हैं

काट डाले वृक्ष हैं

1 min
320


बैठकर अब क्यों मनुज तू आँख मूँदे रो रहा ।

पाप भारी है किए फिर सर पकड़ क्यों रो रहा॥ 


जीव जिनसे थे सुरक्षित काट डाले वृक्ष हैं।

चेतना जागी नहीं तब आँख क्यों अब खो रहा॥ 


सुत समझ वह पालता था वृक्ष सारे प्यार से ।

प्यार का दामन जला अब वह दुखी है हो रहा है॥ 


है बड़ा दाता जहाँ में पेड़ क्यों तू काटता ।

हर जरूरत है अधूरी क्यों मनुज अब सो रहा॥ 


वेदना में वृक्ष भी हैं मूर्ख क्यों मानव हुआ।

खुद मिटाने आप को ही बीज खोटे बो रहा॥


साँस सारी खो रही हैं रोग सारे घेरते ।

है 'प्रखर' जीना कठिन अब हाथ क्यों तू धो रहा॥



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy