"काश"
"काश"
ऐसा हो पाता
सामने बैठकर तुझको
निहारती।
यूँ ही महक उठते कमल
बाँहों में जब होती।
प्यार तेरा होता मेरे
सोलह शृंगार।
पहनाती फिर तुझको मैं
बाँहों के हार।
मैं कोई लेखनी अगर होती।
तेरी कलम से फिर लिखी जाती।
सज जाती होठों पर प्रेम गीत बन।
संवर जाती पलकों पर सुनहरा ख्वाब बन।
काश !काश!
ऐसा हो पाता।।