काश! तुम और मैं
काश! तुम और मैं
काश! तुम खुशबू होती मैं समीर होता ,
मुझमें घुल कर तुम फिजां को सौरभमय बना देती !
काश! तुम नटखट कली होती मैं छिछोरा भँवरा होता ,
तुम हर पल मुझे अपने पास मँडराते हुए पाती !
काश ! तुम मिश्री होती मैं दूध होता,
मुझमें घुल कर तुम मेरी मिठास बन जाती !
काश! तुम वर्षा होती मैं बादल होता ,
एक- दूसरे के बिना हमारा अस्तित्व न रह पाता !
काश! तुम ऑक्सीजन होती मैं हाइड्रोजन होता ,
तब तुम प्राणवायु होती मैं ज्वलनशील होता !
पर एक- दूसरे से मिलकर हम शीतल जल बन जाते ।
प्यासे लोगों की जीवन की हम प्यास बुझाते।
काश! तुम आसमां बन जाती मैं पंछी बन जाता ,
हरपल तेरी बाँहों में ही मैं रोज बिताता ।
काश!तुम धूप का टुकड़ा बन जाती मैं पेड़ की पत्ती बन जाता ,
मुझमे तुम इस कदर समा जाती कि दुनिया वाले फिर हमें खोज न पाते !
काश ! तुम स्याही बन जाती मैं कलम बन जाता ,
मुझसे उतरकर मेरी जिंदगी के पन्नों पे उकर आती !
काश! तुम संगीत बन जाती मैं सरगम बन जाता ,
मेरे कंठों से उतरकर तुम मेरा अमर गान बन जाती ।
काश! इस वक्त तुम मेरी बाँहों में होती मैं तेरी बिखरे जुल्फों को सँभाल रहा होता ।
तेरी लबों पे मैं अपनी लबों से अपनी अमर कहानी बना रहा होता ।।