काश शब्दों के पंख होते ..!
काश शब्दों के पंख होते ..!
अगर शब्दों के पंख होते,
छंद छू उड़ाते जाते ..!
तरकश में आने से पहले,
पंख खूबसूरत हो जाते ..!
रंग में डूबा कर हम उन्हें सुखाते,
घायल भी ना हो कोई ऐसा तीर चलाते ..!
भेद बाणों के कहर से बचते,
प्रेम से वापस बुलाते ..!
अम्बर में सुदूर विचरते,
चांद को छू जाते ..!
क्यों सूरज गरम इतना है,
वापस आकर बताते ..!
वृक्षों पर शब्दों की अट्टालिका बनाते,
पंखों में नित रोज स्वर्ण लगाते ..!
काश ..!
