काश! ऐसा कोई दर्पण हो
काश! ऐसा कोई दर्पण हो
मुखौटे के पीछे चढ़ा मुखौटा,
अगर ज़ाहिर हो तो कैसा हो !
दिखा दे इंसान का जो असली चेहरा,
काश ! ऐसा कोई तो दर्पण हो।
दिल टूट जाए इसके पहले ही,
अगर ख़बर लग जाए तो कैसा हो !
मिटा दे जो हर भ्रम इंसान का,
काश ! ऐसा कोई तो दर्पण हो।
झूठ के पीछे छुपा सच जो,
दिख जाए तो कैसा हो !
मन में छुपे भावों को जो दिखा दे,
काश ! ऐसा कोई तो दर्पण हो।
गिरने से पहले ही जो संभाल ले,
काश ऐसा कोई तो सहारा हो !
गिराने वाले की असलियत दिखा दे,
काश ! ऐसा कोई तो दर्पण हो।
हर सवाल को जो सुलझा दे,
कोई तो ऐसा हाज़िर जवाब हो !
हर उलझन में जो राह दिखाए,
काश ! ऐसा कोई दर्पण तो हो।
