कारवां बदल गया
कारवां बदल गया
चले थे हम साथ -साथ उनके,
जाने कब कारवां बदल गया,
जाने कितनी चोटें खाई जमाने की,
अब तो दिल टूटकर बिखर गया!!
एक झौंका आया जाने कहाँ से,
मन में घोर अंधेरा छा गया,
खुद को मिटा देने की कसम खाई थी,
आंखों से निकले आंसू समंदर हो गया,
दूसरों से तो कई बार लड़ जाते थे,
पर खुद से लड़ना कभी हमें आया ही नहीं,
हमारी कमजोरियां कब हमारी
मजबूरियां बन गई ये पता ही नहीं चला,
जिंदगी के आईने में जब भी खुद को देखा
अकेला ही पाया बहुत अकेला मैंने पाया,
हजारों शोर में मैं बस चुपचाप- सा खड़ा था,
पीछे पलट कर देखा तो खुद को खाली हाथ ही पाया,
आगे बढ़ने की कोई राह न दिखती थी,
चारों और जैसे घना अंधेरा सा छाया,
तभी अचानक बिजली कौंधी मन में हुई हलचल,
मुश्किलों से घबराकर क्यों यहां तू रोता है!
जीवन में आगे बढ़ने का नाम व्यर्थ ही इसे खोता है,
सूरज उगता शाम ढले फिर छिप जाता है,
बोलो भला कब सूरज इसके लिए रोता है,
जीवन भी सुख दुख का फलसफा है,
दुख के बाद तो सुख आता है!!