काम है बहुत
काम है बहुत
काम है बहुत,
सोना है कम,
पर दिन बीत रहे
आलस्य में ,
अकर्मण्यता में ,
कब जागरण होगा
कब सपने पूरे होंगे ?
कुछ पता नहीं।
या अधूरे सपनों से ही
यह जग छोड़ देना होगा?
लिखना है बहुत
कितनी महत्वाकांक्षाएं
कितनी इच्छाएँ
कितनी तमन्नाएँ
क्या अधूरी रहने के लिए हैं ?
क्या संतुष्टि न मिलेगी ?
क्या मनोरथ
पूर्ण नहीं होंगे ?
यह नैराश्य क्यों
कब तक
यह दिशाहीनता क्यों
कब तक ?
क्यों नहीं सफलता मिलती
क्यों नहीं कर्मठता जगती ?
यह मन
कितने विचार
कितनी कितने आकांक्षाएँ
कहाँ कहाँ उड़ान भरता है
क्या क्या सोचता है,
क्या क्या सपने देखता है
क्या क्या मंसूबे बाँधता है
क्या सब पूरे होते हैं ?
क्या सपने अपने आप पूरे होंगे ?
परिश्रम तो करना होगा
जीवन तो नियमित करना होगा,
संकल्प लेने होंगे
नियम से चलना होगा,
तभी आशाएँ
सफलीभूत होंगी,
तभी स्वप्न साकार होंगे।