काली स्याही से क्या समझेगा
काली स्याही से क्या समझेगा
तू तो कहता था सनम मैं तुझको अपनी जान दूंगा,
तूने तो खुद ही सनम मेरा सब लूट लिया,
तेरे वादे पर सनम क्यो मैनें ऐतबार किया,
क्यो तेरा साथ दिया ,क्यो तुझे प्यार दिया।
कहनी थी हज़ार शिकायतें, पूछने थे सवाल,
क्यो खेला जज़्बातों से, क्यो बगिया दी उजाड़।
लिख दिया था मैंने एक खत तुम्हारे नाम,
उतार दिए थे पन्नों पर मेरे सारे जज़्बात।
मगर भेज न सकी तुमकोऔर सोचती रही,
जो साथ रहकर न समझ सका ,
वो काली स्याही से क्या समझेगा।

