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Bhavna Thaker

Tragedy

4  

Bhavna Thaker

Tragedy

काले साये की शिकार

काले साये की शिकार

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रुप नगर की एक सुंदरी 

निकली रूनझुन मस्त पवन सी

लिए ओख में सपने अपने 

शीत सुहाने मनभावन 

उजले तन में कुँवारे स्पंदन 

रात के एक मौन प्रहर में 

घर की राह के एक मोड़ पर 

आया कहीं से काला साया 

पीठ पे खंजर भोंकता भरमाया

कुचली काया, कली नाजुक सी 

रौंद कर वो छिप गया 

तन क्या उज़डा मन ही मर गया 

देह कलंकित कर गया 

बंद पलकें डर की डगर पे 

सिसकियों की तान पे चलते 

आँसूओं के बहरे शहर में 

दर्द की क्षितिज पर झुलसती 

वेदना के तन से लिपटी 

एक चिंगारी जल रही 

शूल भरा जग जिसका ठहरा 

धूल भरा है आशियाना 

जी रही थी रक्त रंजित 

दु:ख पाथेय संभाले

पंख कट गए उड़ान बौनी

उज़डे अंग सिकुड़ती शर्मीली

मासूम सी एक मृगनयनी 

छलनी रूह थी रोती जिसकी 

पलकों की हर बूँद-बूँद को 

मुस्कानों में पाले 

साँसे लेती अधमरी सी 

पीली सी पड़ गई 

सोनपरी थी

ताली के ताल पर 

हंसी उड़ाते करुणा के रखवाले 

हारी जग की तानाशाही से 

लाँघ क्षितिज की अंतिम देहरी 

भेंट धरी ज्वाला के चरणें 

आख़री आँच में बुन ही डाले 

टूटे तन के ताने बाने 



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