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Ratna Pandey

Drama Tragedy

5.0  

Ratna Pandey

Drama Tragedy

जवान बेवा

जवान बेवा

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चाँद सितारों के साथ, खुशियां लेकर आई बारात,

नहीं था मंजूर प्रभु को, उनका जीवन भर का साथ।

चंद लम्हे बीत ना पाए, सिंदूरी मांग सूनी हो गई,

खनकती चूड़ियों की खनक, जाने कहाँ गुम हो गई।


सुर्ख होठों की लाली, अश्कों में मिलकर धुल गई,

सपने पूरे बुन भी ना पाई, तक़दीर चुराके ले गई।

ब्याह कर संग लाया था जो, सांसें उसकी टूट गई,

एक दुल्हन सुहागन बनते ही बेचारी विधवा हो गई।

चला गया उसका परवाना, शमा बन वह जलती रही,

सब सहन करती रही, गम में हर पल वह पलती रही।

किन्तु वासना से लिप्त नज़रें, जब उस बेबस पर पड़ीं,

जीना दूभर हो गया उसका, आ गई जब ऐसी घड़ी।


पति का स्वर्ग सा वह घर, जहां मान और सम्मान था,

खुशियों से बीत जायेगा जीवन, बस यही अरमान था।

पति के जाते ही, हर नज़र वासना में लिप्त होने लगी,

प्यार और सम्मान भरी नज़रें, हवस के जाल में घिरने लगीं।

जवान बेवा घर के अंदर ही, भेड़ियों का शिकार होने लगी,

बच ना पाई ज़ालिमों की गिरफ्त से, ज़िंदगी नर्क होने लगी।

बंद हो गई है सती प्रथा बरसों पहले, सब हैं इसी भ्रम में,

किंतु आज भी ज़िंदा है वह कारण, घर की चारदीवारों में।


गूंजती हैं बेबस चीखें महलों और भीड़ से भरे चौराहों में,

जल रही है आज भी नारी, वासना से लिप्त चिताओं में,

केवल निर्जीव असहाय देह ही बाकी रह जाती है और

आत्मा हवस की धधकती चिताओं में सती हो जाती है।


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