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जोकर

जोकर

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दौडूँ तो गिर जाऊं

उठकर फिर सम्भलता हूँ,

चोट लगे ना और कभी,

मै धीरे-धीरे चलता हूँ

सपने देखूँ जो तारों के,

हँसते-हँसते सोकर

सपनो पर मेरे हँसती दुनिया

कहती मुझको जोकर

अपना हो या पराया,

दिल में सबको बसाता हूँ

खुद की ख़ुशी की खबर नहीं

जी भर के हँसाता हूँ

हँसता तूझे फिर देखता

जब मैं सुध-बुध खोकर

दुनिया हँसती जोर-जोर

कहकर मुझको जोकर

चलते-चलते जब गिर जाऊं

होती नहीं हताशा 

फिर खड़ा हो हँसता हूँ

बनकर एक तमाशा

चेहरे से मुस्काता रहता

दिल में थोड़ा रोकर

फिर देखकर मुझको हँसती दुनिया

और कहती मुझको जोकर

चलने को जीवनपथ पर

एक राह है मेरी,

हाँ, कल्पना तो की है

एक मंज़िल होगी मेरी

सह रहा हूँ ज़ख्मों को

हँसकर कभी, कभी रोकर

न जाने क्यों हँसती दुनिया

क्यों कहती मुझको जोकर

सर पे टोपी नहीं, नाक नहीं है लाल

सिर्फ यही होता नहीं, जोकरों का हाल 

हँसते है वो हरदम, सुख दुःख सारे ढोकर

हिम्मत नहीं जो जी लें, बनकर सारे एक जोकर

रातों के अँधेरे में 

चुपके-चुपके रोता हूँ

चाहे कितना दर्द बढ़े

कमज़ोर नहीं होता हूँ

अनगिनत मैं फल उगाऊं

कर्मों के बीज बोकर

और सुबह सरेआम फिरूँ

बनकर मैं एक जोकर


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