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MUKESH GOEL

Tragedy

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MUKESH GOEL

Tragedy

जलती चिता !

जलती चिता !

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पूछ रही है एक सवाल

क्यों इंसान लगा है

सब को काटने में

क्या पाता है वो ?


बस जल जाना है अंत में

बचती हैं कुछ हड्डियाँ

कुछ राख

जल जाता है सब कुछ

कुछेक पल में !


अपने ही देते हैं जला

छोड़ आते है उस धधकती आग में

कितने पत्थर दिल होकर !


प्राण निकलते ही शरीर से

हो जाता है इंसान एक शव

जीते जी जिसे पूछते हैं सभी

शव होते ही हो जाता है भारी


निकालो इसे जल्दी निकालो

घर से इसे बाहर निकालो

रखते ही अर्थी पर

उठाओ उठाओ की आवाजें

जल्दी करो की आवाजें


क्यों इतना बेसब्र हो जाता है इंसान

अपने ही को

निकालने को आतुर

घर से बाहर

जलाने को आग में


क्या है ये जिंदगी ?


भूल जाते हैं सभी

मरघट से बाहर आते ही

कि आना है तुम्हें भी यहाँ

अपने आख़िरी दिन


फिर क्यों लगा है ?

बुरा कमाने में

जब होना ही है राख

क्या साथ लेकर जा सकेगा

ये धनदौलत ये घर-बार

ये बीबी-बच्चें, ये संसार

आया खाली हाथ

और जाएगा खाली हाथ


ये जलती चिता

जिसे सब भूल जाते हैं

आँखों से ओझल होते ही


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