ज़िंदगी समझ बैठे थे आपको अपनी
ज़िंदगी समझ बैठे थे आपको अपनी
ज़िंदगी समझ बैठे थे आपको अपनी
खुद से भी ज़्यादा भरोसा किया था,
नहीं जानते थे, धोखा है वो आपका
जिसे इश्क़ का जाम समझ लिया था।
तपती धूप में आप आए शीतल छाया बनकर
साथ चलने का वादा भी तो आपने किया था,
समझ न सके झूठे थे वादे आपके, झूठी वफ़ा
ना जाना कि मतलब का तलबगार मिला था।
आप तो कर गए पल में इख़्तिताम-ए-सफ़र
हमने तो मंजिल आप को ही मान लिया था,
चले गए जिन ख़्वाबों को करके यूँ दफ़दीन
उसकी ताबीर तो आपको ही मान लिया था।
गमगुसार समझा जिसे, उसी से ज़ख्म मिले
न जाना कभी आपने तो सौदा ही किया था,
हम आँखें मूंद कर चलते रहे साथ आपके
हमने अंजाम सोचकर कहाँ प्यार किया था।